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आज़ादी तो क्रांति से आई

देश की असली आजादी तो क्रांति से आई थी

तेरी दर्द भरी कहानी में मैं कैसे शामिल हो जाऊं, बहरूपिए हो तुम मैं कैसे शामिल हो जाउ,
मैं कैसे भूलूं शहीदों की चीखों को,
मैं कैसे भूलूं 23 साल के नौजवानों को,
सूली आज भी मुझे वह दिख रही है,
मेरी आंखो के सामने वह टिक रही है,
अरे क्या करते हो तुम भारत पाकिस्तान का बंटवारा,
जरा उन जवानों को भी याद कर लो जिन्होंने अपना जीवन इन दोनों मुल्कों पर वारा।
मैं गांधी जी का बन जाऊं पुजारी,
लेकिन बंटवारे के वक्त क्या उन्हें याद नहीं आई हमारी,
वतन बंट रहा था तुम मौन थे,
अब पूछ रहे हो कि नाथूराम गोडसे कौन थे,
बंग भंग हुआ तब भी तुम ना समझे,
दिल का टुकड़ा छीन ले गया जिन्ना तब भी तुम ना संभले,
अच्छा हुआ गांधीजी तुम को गोडसे ने मार दिया,
जब जिन्ना की बातों में आकर हिंदुस्तान और पाकिस्तान को अलग किया,
मेरी नजर में हिंदुस्तान का आज हर एक युवा मौन है,
जरा पूछो उन फांसी पर लटके हुए जवानों से कि वह कौन है,
मुझे आज भी याद है जो कत्लेआम हुआ,
हिंदुस्तान जब पाकिस्तान के रूप में बर्बाद हुआ,
हां तुम थे अहिंसा के पुजारी मैं भी बन जाऊं,
पर मैं उस आजाद को कैसे भूल जाऊं,
आजाद था, आजाद है,आजाद रहेगा,इस वचन को मैं कैसे झुटलाऊँ,
जलियां की वह आग आज भी सीने में चिंगारी बन कर बैठी है,
सभी अपनी अपनी राजनीति में लगे हुए हैं कौन कहता है कि देश मेरी माटी,
अरे पूछो उन माताओं को जिन्होंने अपने सीने पर पत्थर रख दिया,
अपने आंख के तारे को देश के लिए न्योछावर कर दिया,
पूछो उस पिता से जिसके सामने भगत सिंह ने बंदूक के बोई थी,
क्या उस रात उस पिता की आंखें चैन से सोई थी,
इंकलाब की वह बोली घर-घर में गूंज उठी थी,
तुम्हारी अहिंसा की उस टोली में कितनी चीखें रोज उठी,
तुम सही हो यह "पारासरिया" मानता है,
व्यक्तिगत तौर पर नहीं पर इतिहास के जरिये उनको जानता है,
तुमने अपने तरीके में शांति अपनाई थी,
लेकिन देश की असली आजादी तो क्रांति से आई थी,
देश की असली आजादी तो क्रांति से आई थी।
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मायड़ भाषा एक अनशन

राजस्थान खुद रे माई एक न्यारी प्रतिभाहै। अठा रा लोग न्यारा,गांव न्यारा,पहनाव न्यारो अर शिक्षा न्यारी। अर सबसु न्यारी अठा री भासा राजस्थानी एकदम न्यारी 10 करोड़ लोगां री आ भासा जकी ने हलताई मान्यता नी मिली। राजस्थान रा ट्रेडिशनल अर फ़ोक गाणा री तो भात ई न्यारी है। आज रा जुग माई राजस्थान रा ट्रेडिशनल अर फोक गाणा देश अर विदेशा माई गणा ई भाजे है। घूमर अर कालबेलिया नाच सबसु न्यारो है। राजस्थानी रो स्वागत गीत केसरिया बालम आवो नी थे पधारो म्हारे देश ने सुण अर विदेशी पर्यटक भी एकदम राजस्थान री संस्कृति रे माई मन ही मन खो ज्यावै। विदेशी पर्यटक अठा री संस्कृति रा क़ायल है। पुष्कर जेड़ा पवित्र धाम अठे। काले री एक गानो रा कुछ बोल म्हारे कानडे म्है भड़िया तो मने गणों ही सुहावनो लाग्यो। बे बोल म्हे आपरे सामी राखु "लड़ली लूमा झूमा ऐ लड़ली लूमा झूमा ऐ,
 मारो गोरबंद नखरालो,
 आलीजा मारो गोरबंद नखरालो"
 "मूछा मारी शान है जूती सूं पहचान है"
एड़ा कई गीत अठा री संस्कृति री पहचान है
पण आपणो दुर्भाग्य है के हलताई आपणी भासा ने सरकार मान्यता कोनी दिवि। अमरीका अर सयुंक्त राष्ट्र ने भी राजस्थानी भाषा ने अंतरराष्ट्रीय भासा रो दर्जो दियो। नेपाल रे माई राजस्थानी ने मान्यता है पण भारत मे राजस्थानी ने मान्यता कोनी। पण देवकिशन जी राजपुरोहित ने अनशन शुरू कर अर राजस्थानी भासा ने मान्यता सारू एक बहुत बड़ी हुंकार भरी है अब जाणा राजस्थानी ने मान्यता मिल ज्यासी।
जै जै राजस्थानी
रामकंवार पारासरिया
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पिया म्हारा परदेसी



देखो थाणी आखड़लिया मारी मारो नैणा नीर बह ग्यो,
मै रोउ मनड़े उबी आँगन क्यूँ रे म्हारो पियो परदेसी हो ग्यो।

थाणी याद में कळपती काया मारी होगयी केश,
पिया मारी बात सुणो थे क्यूँ बैठा परदेस।


पगलिया री सुण म्हे वाज वो,
दौड़ी आई आंगणे पिया म्हारा वो,
हिवड़ो गणो म्हारौ उकसायो,
जद परदेसी तू आंगणे नइ आयो।

सखी सहेली पूछे माने कद आवे भरतार जी,
कुण समझावे इणने पिया होग्या परदेसी जी।

जोगण बणगी म्हे ज्यूँ ही मीरा बाई वो,
थे मत बणो जोगी म्हारा पिया परदेसी ओ।

थारा सु मिलण री आस ही मारी,
क्यूँ तोड़ी थे आस पिया मारी,
उबि उबि थाने उडीकु धोरे माथे वो,
कद आवेलो पियो परदेसी मारो वो|

याद थाणी माने गणी आवे,
परदेश पियो क्यूँ जावे,
मनड़ो हो ग्यो उदास जद,
परदेशी म्हारे देश आवेलो कद।

मै रोऊ पिया म्हारा कुण थाने बतावे,
"रामकंवार" सगळी बात बतावे |
ramkanwar parasriya

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म्हारी मावड़ी

“मारी मावड़ी”

काले ज्यु हि मारी आँख मिली,
मारी मावडी मने सुपणा रे माये दिखी|
अबे सुपणों यू जोर को आयो,
बचपन रा वे दिन याद लायो|
मावडी मारी गिले आंगने सोई ही,
अर मने बिरी छाती रे लगाई सोई ही|
लोरी गायर मने सुलाई ही,
पण बिरी खुद री नींद उडियोड़ी ही|
आंगनो तो पुरो आलो हो,
पण छत सु भी पाणी टपकतो हो|
अर आंगने माथे तो खुद सुयगी ही,
पण छत रा पाणी रो जतन करती ही|
फेर बैठी हुयर मने गोदिया म सुलायो हो,
अर खुद आखी रात जागी ही|
पाणी रो एक ई टपको मारे माथे पडंदियो कोनी,
अर बिने आखी रात मै सोवणदि कोनी|
फेर सूबे रा बीने एक जपको आयो,
मारे भी एक झटको लाग अर सुपणों टूटियो|
मन गणों कलपियो बी सुपणा ने देखर
अबे मारे आंख्या सु पाणी पडगो,
अर “रामकंवार” आधी ही ई कविता ने लिखगो|
by रामकंवार पारासरिया
8696170664


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प्यारी बहना


"प्यारी बहना"

क्या लिखूं उसके बारे में वह रिश्ता का बड़ा अंबर है,
इन सारे मानवीय रिश्तों में वह बड़ा समंदर है।
क्या लिखूं उसके बारे में वह है हवाओं का फ़साना,
या है परियों का पहला गहना,
वह है आसमान में तारों का टिमटिमाना।
सूरज की कड़कड़ाती धूप में है वह छांव का बहाना,
बस यही है कहना हे प्यारी मेरी बहना।
मुझे चोट लगती तो वह अपने नन्हें हाथों से उस चोट पर हाथ फेरती और कहती दुख रहा है,
मेरी कमीज को गीला करके फिर सुखाती और कहती अभी गीला है सूख रहा है।
फिर शहर आया तो पापा से झगड़कर कॉल करवाती,
भैया आप वापस कब आओगे बस यही मुझसे पूछती।
जब मैं गांव जाता तो मेरे लिए तोहफा नहीं लाऐ इस बात पर रूठ जाती,
इस बार लाऊंगा कहते-कहते ही फिर मान जाती।
उसकी इस निश्छलता को देख कर मेरी आंख भर आती,
मैं इन आंशुओं को अपने दिल में छुपाता बस यही कहता ले बांध मेरी प्यारी बहना राखी।
अब गम यह नहीं है कि तू मेरे पास नहीं है,
ससुराल में तू खुश रहना बस दुआ यही है।
क्या लिखूं इस सांसारिक अंधकार में तू मेरे लिए प्रकाश की किरण रही है।
परीक्षा में परिणाम कैसा रहेगा इस बात को मेरे सोचने पर तू मेरा दिल बहलाती,
जब भी मैं मंजिल की राह में गिरने लगता तू मेरा साहस बढ़ाती।
लेकिन क्या लिखूं यह मेरी मजबूरी है,
हमारे बीच अब जो दूरी है।
क्या लिखूं अब तू ही तो मेरा श्रंगार तू ही मेरा गहना है,
क्या कहूं यही तो मेरा कहना है बस तू ही प्यारी बहना है।
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