"प्यारी बहना"
क्या लिखूं उसके बारे में वह रिश्ता का बड़ा अंबर है,
इन सारे मानवीय रिश्तों में वह बड़ा समंदर है।
क्या लिखूं उसके बारे में वह है हवाओं का फ़साना,
या है परियों का पहला गहना,
वह है आसमान में तारों का टिमटिमाना।
सूरज की कड़कड़ाती धूप में है वह छांव का बहाना,
बस यही है कहना हे प्यारी मेरी बहना।
मुझे चोट लगती तो वह अपने नन्हें हाथों से उस चोट पर हाथ फेरती और कहती दुख रहा है,
मेरी कमीज को गीला करके फिर सुखाती और कहती अभी गीला है सूख रहा है।
फिर शहर आया तो पापा से झगड़कर कॉल करवाती,
भैया आप वापस कब आओगे बस यही मुझसे पूछती।
जब मैं गांव जाता तो मेरे लिए तोहफा नहीं लाऐ इस बात पर रूठ जाती,
इस बार लाऊंगा कहते-कहते ही फिर मान जाती।
उसकी इस निश्छलता को देख कर मेरी आंख भर आती,
मैं इन आंशुओं को अपने दिल में छुपाता बस यही कहता ले बांध मेरी प्यारी बहना राखी।
अब गम यह नहीं है कि तू मेरे पास नहीं है,
ससुराल में तू खुश रहना बस दुआ यही है।
क्या लिखूं इस सांसारिक अंधकार में तू मेरे लिए प्रकाश की किरण रही है।
परीक्षा में परिणाम कैसा रहेगा इस बात को मेरे सोचने पर तू मेरा दिल बहलाती,
जब भी मैं मंजिल की राह में गिरने लगता तू मेरा साहस बढ़ाती।
लेकिन क्या लिखूं यह मेरी मजबूरी है,
हमारे बीच अब जो दूरी है।
क्या लिखूं अब तू ही तो मेरा श्रंगार तू ही मेरा गहना है,
क्या कहूं यही तो मेरा कहना है बस तू ही प्यारी बहना है।
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